Dr. Shyam Sunder Parashar Ji Maharaj

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महाराज श्री का जीवन परिचय

मध्य प्रदेश ग्वालियर में माता पार्वती नदी के पावन तट पर नगर भितरवार में श्री शास्त्री जी का जन्म 8 जून 1967 तदनुसार वट् अमावस को एक सद्गृहस्थ परिवार में हुआ। आपने श्रीधाम वृन्दावन में व्याकरण वेद शास्त्रों सहित श्रीमद्भागवत का अध्ययन वेदमूर्ति श्री राजवंशी जी द्विवेदी द्वारा श्री धर्म सङ्ग संस्कृत विद्यालय रमणरेती वृन्दावन में किया, जो धर्मसम्राट श्री स्वामी करपात्री जी द्वारा प्रतिष्ठापित है।

महाराज श्री के पूज्य सदगुरुदेव भगवान पंचरसाचार्य करुणा वरुणालय
(श्री स्वामी राम हर्षण दास जी महाराज)

अनन्त श्री सम्पन्न प्रेमावतार पंचरसाचार्य करुणा वरुणालय श्री स्वामी राम हर्षण दास जी महाराज को भक्तवृंद उपरोक्त विशेषणों से समलंकृत करते हुए देखे सुने गए हैं यद्यपि मैं स्वयं स्वामी जी का ही कृपा पात्र हूँ। परंतु इन सभी विशेषणों की सार्थकता को नहीं जानता था, उसी तरह जैसे प्रतिदिन दर्शन करते हुए भी हम सूर्य भगवान क्या हैं इस रहस्य को नहीं समझ पाते।

एक दिन स्वामी जी के दर्शनार्थ भारतवर्ष के सर्वमान्य संत, साधु समाज के भूषण, तपोमूर्ति महान वीतरागी महापुरुष श्री स्वामी रामसुखदास जी महाराज आये। स्वामी जी ने उन संत की प्रतिष्ठा के अनुरूप आसन दिया और स्वागत करवाया। थोड़े समय तक सत्संग हुआ, पश्चात श्री रामसुखदास जी अपने आसन से उठे और स्वामी जी के चरणों में अपना सिर रख दिया यह कहते हुए कि जब तक आप अपना वरद हस्त मेरे सिर पर नहीं रख देंगे तब तक मैं सिर नहीं उठाऊंगा।

स्वामी जी जो अपने को तृणादपि सुनीच समझने वाले, संत के व्यवहार को देखकर अवाक रह गए। बहुत विनय की तब भी सिर नहीं उठाया तब स्वामी जी ने अपने प्रधान शिष्य महान्त श्री हरिदास जी से कहा “इत्र लाइये” और अपनी दोनों हथेलियों में इत्र लगाकर श्री रामसुखदास जी के सिर पर यह कहते हुए हाथ रख दिए कि मैं आपको आशीर्वाद देने लायक नहीं हूँ। आपकी सेवा कर रहा हूँ सिर की चम्पी (मालिश) किये दे रहा हूँ।

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