Dr. Shri Shyam Sunder Parashar Ji Maharaj

II महाराज श्री का जीवन परिचय II

गालव ऋषि की तपस्थली एवं संगीत सम्राट तानसेन जी की साधना भूमि ग्वालियर जिला मुख्यालय से 72 किमी दूर नगर भितरवार जहाँ माँ पार्वती नदी का कल-कल करता हुआ कलरव बरबस सभी के मन को मुग्ध कर देता है ऐसी पुण्यभूमि में पूज्य डॉ. श्री श्यामसुन्दर पाराशर जी का जन्म ज्येष्ठ की वअमावस्या वि. सं. 2024 तदनुसार दिनांक 8/6/1967 को एक उत्तम ब्राह्मण कुल में हुआ। आपके पितामह सनाढ्य कुल भूषण पं. श्री जीवनलाल जी पाराशर ज्योतिष के महान विद्वान थे उनका आदर प्रत्येक प्राणी के मन में स्वाभाविक रूप से था। श्री शास्त्री जी के माता-पिता वैद्य श्री भगवानलाल जी पाराशर एवं माता श्रीमती विमला देवी जी अत्यंत धार्मिक, गृहस्थ, समाजसेवी हैं। माता-पिता ने जब बालक श्याम सुन्दर को बाल्यावस्था से ही भगवत कथा श्रवण तथा भगवत सेवा की रूचि से परिपूर्ण देखा तो इस बालक को वृन्दावन भेजने का निश्चय किया ताकि वैदिक संस्कारों से भली भाँति परिष्कृत होकर जन कल्याण कर सके।

वृन्दावन के मूर्धन्य विद्वान वेदमूर्ति पं. श्री राजवंशी जी द्विवेदी जी महाराज के चरणों में इस बालक को माता-पिता ने समर्पित कर दिया, जहाँ इस बालक के सम्पूर्ण वैदिक संस्कार करके श्री गुरूदेव ने इन्हें धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज के द्वारा प्रतिष्ठापित श्री धर्म संघ संस्कृत विद्यालय वृन्दावन में प्रवेश दिया। इस विद्यालय में 7 वर्ष रहकर व्याकरणादि शास्त्रों का अध्ययन करके शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की तथा ” श्यामसुन्दर शास्त्री” नाम से विभूषित हुए।

तदुपरान्त वृन्दावन की रमणरेती में 25 वर्षों से अखण्ड वास करने वाले बरेली के भूतपूर्व सांसद एवं कुशल राजनीतिज्ञ श्री सेठ विशनचंद जी के सानिध्य में रहकर नित्य भगवान रूद्र का विविध पुष्पों से श्रृंगार एवं अभिषेक करते हुए निवास किया। इसी अवधि में श्री शास्त्री जी ने श्रीमद्भागवत एवं शास्त्रीय संगीत का विधिवत् अध्ययन किया।

एक बार रमणरेती के संतों ने मिलकर श्री संतदास जी महाराज के आश्रम में श्री शास्त्री जी को प्रथम बार श्रीमद्भागवत कथा हेतु व्यासपीठ पर आसीन किया उस समय शास्त्री जी की अवस्था मात्र 16 वर्ष की थी। शुक स्वरूप श्री शास्त्री जी के मुख से भागवत कथा श्रवण कर सभी महात्मा मुग्ध हो गये और आशीर्वाद स्वरूप एक श्लोक निर्मित करके स्वामी श्री केशवानंद सरस्वती जी ने प्रदान किया-

श्यामावामाकृतपदनतिः सुन्दर: श्यामपूर्व:

     श्रीमद् भागवते महामुनिकृतेऽनुष्ठितो येन यत्नः ।

   शाब्दे शास्त्रे कृतपरिचयो गीत संगीत वाद्ये

      सोऽयं प्राप्तः सदसि भवतां सद्कथां वस्तुमत्र ।

श्री विशनचंद सेठ जी ने भी एक बार श्री शास्त्री जी से कथा श्रवण की कामना प्रगट की तो प्रतिदिन श्री सेठ जी के यहाँ भी कथा होने लगी। एक दिन सेठ जी के लघुभ्राता श्री त्रिलोक चंद सेठ जी वृन्दावन आये और उन्होंने जब अपने भाई के साथ बैठकर श्री शास्त्री जी के मुख से भागवत कथा का श्रवण किया तो मुग्ध होकर अपने बड़े भाई से बोले- “भैया जी ! देखना किसी दिन अपने श्याम सुन्दर जी विश्वस्तर के व्यास बनेंगे।” श्री त्रिलोकचंद सेठ जी ज्वेलर्स होने के नाते हीरा स्वर्णादि की परख तो रखते ही हैं किन्तु संत विद्वानों की कृपा से उन्हें व्यासों की भी पारखी दृष्टि प्राप्त हुई; क्योंकि उनकी भविष्यवाणी कुछ ही समय में तब सिद्ध होती दिखाई पड़ी जब श्री शास्त्री जी को वे (सेठ जी) प्रथम बार अपने शहर बरेली में आनंद आश्रम लाये जहाँ श्री शास्त्री जी के प्रवचनों को श्रवण कर श्रोता समुदाय भक्तिसागर में निमग्न होकर नाच उठा और शनैः शनैः बरेली से ही उनकी वाणी का जादू भारत के अनेक राज्यों में व्याप्त होता चला गया। वर्तमान में भारत वर्ष का ऐसा कोई महापुरुष नहीं जो श्री शास्त्री जी की इस शैली और मधुरवाणी का प्रशंसक न हो। अनेक महानगरों में आपकी कथा बड़े विशाल श्रोता समुदाय के मध्य सम्पन्न हो चुकी है। आज मात्र 47 वर्ष की अवस्था में श्री शास्त्री जी ने श्रीमद्भागवत कथा के 800 पारायण सम्पन्न कर लिये है। अनेक स्थानों से विद्वानों द्वारा श्री शास्त्री जी को विविध उपाधियाँ भी प्राप्त हुई हैं। उत्तरकाशी में गंगा के पावन तट पर सम्पन्न हुई श्रीमद्भागवत सप्ताह में शिवानन्द आश्रम द्वारा आपको ‘रसेश’ की उपाधि से विभूषित किया गया किन्तु वे इन उपलब्धियों को प्रभु का दिया प्रसाद समझकर उन्हीं के चरणों का चमत्कार मानते हैं, इसीलिये उनका जीवन बड़ा ही सरल और सहज है। श्री शास्त्री जी बाल्यावस्था से ही श्रीधाम वृन्दावन में आकर रहे तथा श्री बालकृष्ण प्रभु की वाङ्गमयस्वरूप श्रीमद्भागवत का प्रवचन भी किया; किन्तु उनके अर्न्तमन में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के प्रति जो आकर्षण था, वही उन्हें अयोध्या लाया और प्रेममूर्ति पंचरसाचार्य श्री स्वामी रामहर्षण दास जी महाराज 

के द्वारा उन्होंने वैष्णवी दीक्षा ग्रहण की तथा अपनी जन्म भूमि भितरवार में माँ पार्वती के पावन तट पर श्री रामजानकी जी का सुन्दर मन्दिर निर्माण कराया जहां प्रायः प्रतिवर्ष एक विशाल धार्मिक आयोजन किया जाता है। भारत के परम विरक्त संत विद्वानों का श्री शास्त्री जी को विशेष अनुग्रह प्राप्त है। परम वीतराग संत स्वामी श्री विष्णु आश्रम जी महाराज (शुक्रताल) श्री महन्त नृत्यगोपालदास जी महाराज (अयोध्या), , शंकराचार्य श्री स्वामी माधवाश्रम जी महाराज, श्री सीताराम शरण किलाधीश जी (अयोध्या), श्री रामकिंकर जी महाराज, स्वामी विद्यानंद गिरि जी महाराज, पुरी शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वतीजी, देश के महान गायक पं. जसराज जी, श्रीमन् नारायणदास (मामाजी) एवं विश्व संत पूज्य मोरारी बापू जी तथा श्री रमेश भाई जी (भाई श्री) आदि अनेक महापुरुषों ने आपकी कथा की भूरि-भूरि प्रशंसा की एवं आशीर्वाद प्रदान किया। श्री शास्त्री जी इसी आशीष को अपने जीवन का क च मानते हैं। आपने अपने देश के अलावा विदेशों में भी धर्म ध्वजा को लहराया। गत वर्षों में थाईलैण्ड साउथ अमेरिका तथा हॉलैण्ड में आपकी वाणी से हिन्दू समा ज लाभान्वित हुआ एवं कथा की भरपूर प्रशंसा की गई। में पूज्य श्री शास्त्री जी को तीर्थराज प्रयाग में संतों के द्वारा ‘विद्वन्मार्तण्ड’ उपाधि तथा दिल्ली धर्म सङ्ग में “भागवत महामहोपाध्याय” की उपाधि से सम्मानित किया गया है। श्री शास्त्री द्वारा भगवत कथा की भागीरथी में डूबकर गाये हुए भजनों का श्रवण कर श्रोतागण देह-गेह का विस्मरण कर भक्ति रस धारा में निमग्न हो नाच उठते हैं, उन भक्तों की विशेष मांग पर अपने भजनों का संकलन कर (पुस्तकबद्ध करके) छापने का दायित्व श्री शास्त्री जी ने मुझे प्रदान किया जो मेरा सौभाग्य है। आज “भजनामृत” के रूप में वही संकलन आपके हाथ में है। मुझे आशा है इस भजन-अमृत का पान कर आप अपने जीवन का भव ताप दूर करेंगे और भगवत चरणों से जुड़कर भागवती यात्रा मंगलमयी बनावेंगे।